hindisamay head


अ+ अ-

कविता

भाषाई-अपव्यय

राजकुमार कुंभज


किसी एक लड़की को चूमता हूँ
तो चूमता हूँ हजारों-हजार लड़कियों को
जैसे अधर उस एक लड़की के प्रश्न-प्रज्ञा
जितना सोचा नहीं था कभी सोचा उतना-उतना
संभावना दंगा, मारपीट, हुडदंग आदि
हरी पत्तियों में छुपी रहेंगी आखिर कैरियाँ कब तक
किंतु नहीं कम लाचारियाँ भी
तलाश साहस, तलाश दृढ़ता, तलाश सच
किंतु क्या यह भी नहीं सच
कि झूठ का विरोध हुआ अब तो भाषाई-अपव्यय
अपने हिस्से की चाहता हूँ धूप, अपने आकाश में
गर जो मिले अपने साथ-साथ सबको
सबके हिस्से की।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ